#श्रावण मास ……..
श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना। अर्थात सुनकर धर्म को समझना। वेदों को श्रुति कहा जाता है अर्थात उस ज्ञान को ईश्वर से सुनकर ऋषियों ने लोगों को सुनाया था। यह महीना भक्तिभाव और संत्संग के लिए होता है। जिस भी भगवान को आप मानते हैं, आप उसकी पूरे मन से आराधना कर सकते हैं। लेकिन सावन के महीने में विशेषकर भगवान शिव, मां पार्वती और श्रीकृष्णजी की पूजा का काफी महत्व होता है।
हिन्दू धर्म में व्रत तो बहुत हैं जैसे, चतुर्थी, एकादशी, त्रयोदशी, अमावस्य, पूर्णिमा आदि। लेकिन हिन्दू धर्म में चतुर्मास को ही व्रतों का खास महीना कहा गया है। चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। ये 4 माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। चातुर्मास के प्रारंभ को ‘देवशयनी एकादशी’ कहा जाता है और अंत को ‘देवोत्थान एकादशी’। चतुर्मास का प्रथम महीना है श्रावण मास आओ इसके बारे में जानते हैं मुख्य 10 बातें।
1.किसने शुरू किया श्रावण सोमवार व्रत?
हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को विशेषकर देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया।
2.क्या सोमवार को ही व्रत रखना चाहिए?
श्रावण माह को कालांतर में ‘श्रावण सोमवार’ कहने लगे, इससे यह समझा जाने लगा कि श्रावण माह में सिर्फ सोमवार को ही व्रत रखना चाहिए जबकि इस माह से व्रत रखने के दिन शुरू होते हैं, जो 4 माह तक चलते हैं, जिसे चतुर्मास कहते हैं। आमजन सोमवार को ही व्रत रखने सकते हैं। शिवपुराण के अनुसार जिस कामना से कोई इस मास के सोमवारों का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य एवं अतिशीघ्र पूरी हो जाती है। जिन्हें 16 सोमवार व्रत करने हैं, वे भी सावन के पहले सोमवार से व्रत करने की शुरुआत कर सकते हैं। इस मास में भगवान शिव की बेलपत्र से पूजा करना श्रेष्ठ एवं शुभ फलदायक है।
3.क्या पूरे महीने व्रत रखना चाहिए?
हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना गया है। पूरे श्रावण माह में निराहारी या फलाहारी रहने की अनुमति दी गई है। इस माह में शास्त्र अनुसार ही व्रतों का पालन करना चाहिए। मन से या मनमानों व्रतों से दूर रहना चाहिए। इस संपूर्ण माह में नियम से व्रत रख कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
4.श्रावण माह के पवित्र दिन कौन-कौन से है?
इस माह में वैसे तो सभी पवित्र दिन होते हैं लेकिन सोमवार, गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मौना पंचमी, श्रावण माह का पहला शनिवार, कामिका एकादशी, कल्कि अवतार शुक्ल 6, ऋषि पंचमी, 12वीं को हिंडोला व्रत, हरियाली अमावस्या, विनायक चतुर्थी, नागपंचमी, पुत्रदा एकादशी, त्रयोदशी, वरा लक्ष्मी व्रत, गोवत्स और बाहुला व्रत, पिथोरी, पोला, नराली पूर्णिमा, श्रावणी पूर्णिमा, पवित्रारोपन, शिव चतुर्दशी और रक्षा बंधन आदि पवित्र दिन हैं।
5.यदि संपूर्ण माह व्रत रखें तो क्या करना चाहिए?
पूर्ण श्रावण कर रहे हैं तो इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। दिन में फलाहार लेना और रात को सिर्फ पानी पीना। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि का त्याग कर दिया जाता है। इस दौरान दाढ़ी नहीं बनाना चाहिए, बाल और नाखुन भी नहीं काटना चाहिए।
अग्निपुराण में कहा गया है कि व्रत करने वालों को प्रतिदिन स्नान करना चाहिए, सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए। इसमें होम एवं पूजा में अंतर माना गया है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में व्यवस्था है कि जो व्रत-उपवास करता है, उसे इष्टदेव के मंत्रों का मौन जप करना चाहिए, उनका ध्यान करना चाहिए उनकी कथाएं सुननी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।
6.पूर्ण व्रत के अलावा क्या यह श्रावणी उपाकर्म कर्म?
कुछ लोग इस माह में श्रावणी उपाकर्म भी करते हैं। वैसे यह कार्य कुंभ स्नान के दौरान भी होता है। यह कर्म किसी आश्रम, जंगल या नदी के किनारे संपूर्ण किया जाता है। मतलब यह कि घर परिवार से दूर संन्यासी जैसा जीवन जीकर यह कर्म किया जाता है।
श्रावणी उपाकर्म के 3 पक्ष हैं-
प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। पूरे माह किसी नदी के किनारे किसी गुरु के सान्निध्य में रहकर श्रावणी उपाकर्म करना चाहिए। यह सबसे सिद्धिदायक महीना होता है इसीलिए इस दौरान व्यक्ति कठिन उपवास करते हुए जप, ध्यान या तप करता है। श्रावण माह में श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म प्रत्येक हिन्दू के लिए जरूर बताया गया है। इसमें दसविधि स्नान करने से आत्मशुद्धि होती है व पितरों के तर्पण से उन्हें भी तृप्ति होती है। श्रावणी पर्व वैदिक काल से शरीर, मन और इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता है।
7.श्रावण माह में इस तरह के व्रत रखना वर्जित है?
अधिकतर लोग दो समय खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं। कुछ लोग एक समय ही भोजन करते हैं। कुछ लोग तो अपने मन से ही नियम बना लेते हैं और फिर उपवास करते हैं। यह भी देखा गया है कुछ लोग चप्पल छोड़ देते हैं लेकिन गाली देना नहीं। जबकि व्रत में यात्रा, सहवास, वार्ता, भोजन आदि त्यागकर नियमपूर्वक व्रत रखना चाहिए तो ही उसका फल मिलता है। हालांकि उपवास में कई लोग साबूदाने की खिचड़ी, फलाहार या राजगिरे की रोटी और भिंडी की सब्जी खूब ठूसकर खा लेते हैं। इस तरह के उपवास से कैसे लाभ मिलेगा? उपवास या व्रत के शास्त्रों में उल्लेखित नियम का पालन करेंगे तभी तो लाभ मिलेगा।
8.किसे व्रत नहीं रखना चाहिए?
अशौच अवस्था में व्रत नहीं करना चाहिए। जिसकी शारीरिक स्थिति ठीक न हो व्रत करने से उत्तेजना बढ़े और व्रत रखने पर व्रत भंग होने की संभावना हो उसे व्रत नहीं करना चाहिए। रजस्वरा स्त्री को भी व्रत नहीं रखना चाहिए। यदि कहीं पर जरूरी यात्रा करनी हो तब भी व्रत रखना जरूरी नहीं है। युद्ध के जैसी स्थिति में भी व्रत त्याज्य है।
9.क्या होगा व्रत रखने से, नहीं रखेंगे तो क्या होगा?
व्रत रखने के तीन कारण है पहला दैहिक, दूसरा मानसिक और तीसरा आत्मिक रूप से शुद्ध होकर पुर्नजीवन प्राप्त करना और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होगा।
दैहिक में आपकी देह शुद्ध होती है। शरीर के भीतर के टॉक्सिन या जमी गंदगी बाहर निकल जाती है। इससे जहां शरीर निरोगी होता है वही मन संकल्पवान बनकर सुदृढ़ बनता है। देह और मन के मजबूत बनने से आत्मा अर्थात आप स्वयं खुद को महसूस करते हैं। आत्मिक ज्ञान का अर्थ ही यह है कि आप खुद को शरीर और मन से उपर उठकर देख पाते हैं।
हालांकि व्रत रखने का मूल उद्येश्य होता है संकल्प को विकसित करना। संकल्पवान मन में ही सकारात्मकता, दृढ़ता और एकनिष्ठता होती है। संकल्पवान व्यक्ति ही जीवन के हर क्षेत्र में सफल होता हैं। जिस व्यक्ति में मन, वचन और कर्म की दृढ़ता या संकल्पता नहीं है वह मृत समान माना गया है। संकल्पहीन व्यक्ति की बातों, वादों, क्रोध, भावना और उसके प्रेम का कोई भरोसा नहीं। ऐसे व्यक्ति कभी भी किसी भी समय बदल सकते हैं।
अब यदि श्रावण माह में आप व्रत नहीं रखेंगे तो निश्चित ही एक दिन आपकी पाचन क्रिया सुस्त पड़ जाएगी। आंतों में सड़ाव लग सकता है। पेट फूल जाएगा, तोंद निकल आएगी। आप यदि कसरत भी करते हैं और पेट को न भी निकलने देते हैं तो आने वाले समय में आपको किसी भी प्रकार का गंभीर रोग हो सकता है। व्रत का अर्थ पूर्णत: भूखा रहकर शरीर को सूखाना नहीं बल्कि शरीर को कुछ समय के लिए आराम देना और उसमें से जहरिलें तत्वों को बाहर करना होता है। पशु, पक्षी और अन्य सभी प्राणी समय समय पर व्रत रखकर अपने शरीर को स्वास्थ कर लेते हैं। शरीर के स्वस्थ होने से मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ हो जाते हैं। अत: रोग और शोक मिटाने वाले चतुर्मास में कुछ विशेष दिनों में व्रत रखना चाहिए। डॉक्टर परहेज रखने का कहे उससे पहले ही आप व्रत रखना शुरू कर दें।
10.प्रकृति लेती है फिर से जन्म……
इस माह में पतझड़ से मुरझाई हुई प्रकृति पुनर्जन्म लेती है। लाखों-करोड़ों वनस्पतियों, कीट-पतंगों आदि का जन्म होता है। अन्न और जल में भी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है जिनमें से कई तो रोग पैदा करने वाले होते हैं। ऐसे में उबला और छना हुआ जल ग्रहण करना चाहिए, साथ ही व्रत रखकर कुछ अच्छा ग्रहण करना चाहिए। श्रावण माह से वर्षा ऋतु का प्रारंभ होता है। प्रकृति में जीवेषणा बढ़ती है। मनुष्य के शरीर में भी परिवर्तन होता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है। ऐसे में यदि किसी पौधे को पोषक तत्व मिलेंगे, तो वह अच्छे से पनप पाएगा और यदि उसके ऊपर किसी जीवाणु का कब्जा हो गया, तो जीवाणु उसे खा जाएंगे। इसी तरह मनुष्य यदि इस मौसम में खुद के शरीर का ध्यान रखते हुए उसे जरूरी रस, पौष्टिक तत्व आदि दे तो उसका शरीर नया जीवन और यौवन प्राप्त करता है।
#ज्योतिष साधना
Shravan Month…
The word Shravan comes from Shravan (श्रवण), which means “to listen.” That is, to understand dharma (righteousness) through listening. The Vedas are called Shruti, meaning the knowledge that was heard from God by sages and then passed on orally. This month is considered sacred for devotion and spiritual gatherings. You can worship any deity you believe in with full dedication. However, in the month of Shravan, worship of Lord Shiva, Goddess Parvati, and Lord Krishna holds special importance.
In Hinduism, there are many fasts like Chaturthi, Ekadashi, Trayodashi, Amavasya, Purnima, etc. But the four-month period called Chaturmas is considered especially significant for fasting. Chaturmas is the period of four months starting from Ashadha Shukla Ekadashi and ending on Kartik Shukla Ekadashi. These four months are Shravan, Bhadrapada, Ashwin, and Kartik. Chaturmas begins with Devshayani Ekadashi and ends with Devuthani Ekadashi. Shravan is the first month of this period. Let’s learn 10 key facts about Shravan.
1. Who started the Shravan Monday fast?
According to Hindu mythology, Shravan is especially dear to Lord Shiva. When the Sanat Kumars asked Lord Shiva why He favored this month, He explained that when Goddess Sati gave up her life in her father Daksha’s yajna, she vowed to marry Lord Shiva in every birth. In her next birth, she was born as Parvati to Himachal and Queen Maina. During her youth, she observed a strict fast in the month of Shravan, pleased Lord Shiva, and eventually married him. Since then, this month became sacred for Mahadev.
2. Should fasting be done only on Mondays?
Over time, Shravan came to be associated with “Shravan Mondays,” which led people to believe that fasting should be done only on Mondays. But actually, fasting begins in Shravan and continues for four months (Chaturmas). The general public may keep fasts on Mondays. According to the Shiv Puran, whatever wish one has while observing the Shravan Monday fast, it gets fulfilled quickly. Those doing 16-Monday fasting (Solah Somvar) also begin from the first Monday of Shravan. Worshiping Lord Shiva with Bel leaves (Bilva Patra) is especially auspicious this month.
3. Should one fast for the entire month?
In Hinduism, Shravan is considered holy and suitable for fasting. One may remain on fruits or avoid grains during this month. Fasting should be done according to scriptures, not self-made rules. By observing disciplined fasts throughout Shravan, one can attain spiritual benefits.
4. Which are the sacred days in Shravan?
While the whole month is sacred, key days include:
- Mondays (Somvar)
- Ganesh Chaturthi
- Mangala Gauri Vrat
- Mauna Panchami
- First Saturday of Shravan
- Kamika Ekadashi
- Kalki Avatar day (Shukla 6)
- Rishi Panchami
- Hindola Vrat (12th day)
- Hariyali Amavasya
- Vinayaka Chaturthi
- Nag Panchami
- Putrada Ekadashi
- Trayodashi
- Vara Lakshmi Vrat
- Govatsa and Bahula Vrat
- Pithori, Pola
- Narali Purnima
- Raksha Bandhan
- Shiv Chaturdashi
- Pavitropan
5. What should one do if observing the full-month fast?
If observing a complete Shravan fast:
- Sleep on the floor, and wake before sunrise
- Take a proper bath and stay mostly silent
- Eat fruits in the day, drink only water at night
- Avoid: milk, sugar, curd, oil, eggplant, leafy vegetables, salty/spicy food, sweets, betel nut, meat, and alcohol
- Avoid cutting nails, shaving, and haircuts
6. What is the Shravan Upakarma ritual?
Some people also perform Shravani Upakarma during this month. Ideally done near a river or forest, living like a monk. It has three components:
- Repentance (Prayaschitta)
- Spiritual rituals (Samskara)
- Self-study (Swadhyaya)
On Shravan Purnima, every Hindu is recommended to do Shravan Upakarma, including tarpan for ancestors. This festival purifies the body, mind, and senses.
7. What kind of fasts are forbidden in Shravan?
Many people eat heavily during fasts. A true fast means renouncing travel, sexual activity, gossip, and excessive food. People eating heavy vrat meals get no real benefit. Fasting only helps if done according to scriptural rules.
8. Who should not fast?
Avoid fasting if:
- You are in a state of impurity (ashaucha)
- You have health issues
- You are menstruating
- You need to travel
- You are in a war-like or emergency situation
9. What happens if you fast or don’t fast?
There are three benefits of fasting:
- Physical – Detoxifies the body
- Mental – Builds strong willpower and self-control
- Spiritual – Helps you connect with your soul
The main goal of fasting is self-discipline and willpower. Without resolve, one cannot succeed in life.
If you don’t fast, your digestive system may weaken, toxins accumulate, and you may fall ill. Fasting gives the body rest and removes toxins. Even animals instinctively fast to stay healthy.
10. Nature is reborn…
In this month, wilted nature revives itself. New plants, insects, and life forms appear. Microbes increase in food and water, some of which are harmful. That’s why boiled or filtered water and light food are recommended. Shravan marks the start of the monsoon, bringing lush greenery. Nourish yourself well to rejuvenate your body and mind.