रावण वेदों का ज्ञानी लेकिन आत्मज्ञानी नहीं

रामायण के संदर्भ में जब भी रावण की बात आती है तो लोग कहते हैं।कि वह तो बहुत ही बुद्धिमान और चारों वेदों का ज्ञानी था।लेकिन यदि वह चारों वेद का ज्ञान ही था।तो उसे रामायण का “खलनायक” क्यों बनाया गया। इस पर चिंतन करना जरूरी है। रावण वेदों का ज्ञानी और ऋषि पुत्र होते हुए भी अपने व्यवहार में अधर्मी और महाकाव्य रावण रामायण का खलनायक है। क्या इसके जरिए ऋषि वाल्मीकि जी हमें कुछ रहस्य बताना चाहते हैं?क्या वह यह बताना चाहते हैं कि केवल वेदों का ज्ञान भर होने से आप धर्म के मार्ग पर चलने योग्य नहीं बन जाते। जैसे आजकल खूब पढ़े लिखे कई लोग भी अहंकारी और भ्रष्टाचारी बन जाते हैं। तो क्या इसी बात को समझाने के लिए रावण एक रूपक है।

वेदों के बारे में बात करने का मतलब क्या है?
वेदों में मंत्र संहिता और उपनिषद होने के साथ-साथ यज्ञ, ज्योतिष शास्त्र,वास्तु शास्त्र,और आयुर्वेद का ज्ञान है।लेकिन वेदो की मूल धारणा आत्मज्ञान है। अनेक आचार्यों का भी यही मानना है।कि जो सच में वेद का ज्ञान प्राप्त करता है। उसमें आत्मज्ञान आता है, मतलब उसे ब्रह्मविद्या की प्राप्ति होती है। उसका अहंकार कम होते जाता है। और धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। उसके अंदर की आत्मा प्रज्वलित हो होती है।

किसी के पास आत्मज्ञान होने का संकेतक क्या है। इसे समझने के लिए शिव को रामायण में पात्र बनाया गया है। शिवजी एक वैरागी है।उन्होंने कामदेव को अपनी तीसरी आंख से जलाकर राख कर दिया और वह राख अपने शरीर पर लगाई।वे विभूति नाथ हैं जिन्हें किसी भी तरह की कोई संपत्ति नहीं चाहिए। वह मेरा और तेरा की संकल्पना से परे हैं। और इसलिए उनके पास में न घर है न धन-धान्य और ना ही संपत्ति। उनका विवाह हो जाने पर भी वे गृहस्ती संभाल नहीं पाते। गृहस्ती का सारा भार उनकी पत्नी पर आता है।जो धीरे-धीरे इस भोलेनाथ को समझाती है कि गृहस्थ जीवन में कैसे जीना पड़ता है।

रावण को इस वैरागी शिव का भक्त माना जाता है। शिव भी वेद स्वरूप माने जाते हैं।रावण शिव जी पर अधिकार जमाना चाहता है। इसलिए वह कैलाश पर्वत को उठाकर लंका की ओर ले जाना चाहता है। मतलब जो भगवान मेरा और तेरा की संकल्पना से बिल्कुल परे है।उनका भक्त उन पर ही अधिकार जमाना चाहता है। यानी रावण शिव भक्त होते हुए भी शिव तत्व समझने में विफल रहता है। मतलब वह आत्मज्ञान और वेद का मर्म नहीं समझता। और इसलिए ही शिव जी अपने पैर से कैलाश पर्वत को नीचे दबाकर और रावण को उसके नीचे फंसा कर उसे एक शिक्षा देते हैं। रावण अनुग्रह मूर्ति कई शिव मंदिरों में दिखाई देती है जिसमें रावण को शिव जी के चरणों में दर्शाया गया है। यह बताता है कि वेदाचार्य और शिव भक्त होते हुए भी रावण अहंकारी और घमंडी था। और शिवजी ने उसके घमंड को चूर चूर किया।

रामायण में कहा गया है कि किसी पर- स्त्री का हरण करना निंदनीय है। वेदाचार्य होते हुए भी रावण ने सीता का हरण किया वह एक पर स्त्री का आदर नहीं करता था यह भी इस बात का संकेत है कि वेद आचार्य होते हुए भी उसके पास आत्म ज्ञान नहीं था लोग अक्सर कहते हैं कि रावण ने प्रतिरोध स्वरुप यह निंदनीय कार्य किया क्योंकि राम के अनुज लक्ष्मण ने उसकी बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी लेकिन प्रतिशोध का मतलब है अहंकार और अहंकार का मतलब है आत्मज्ञान का न होना। मतलब वेदों के ज्ञान के रहस्य को न जानना। यह एक और संकेत है कि रावण भले ही वेदों का ज्ञानी था लेकिन फिर भी आत्मज्ञान प्राप्त नहीं कर सका।

इस विडंबना के समाधान के लिए पुराणों में एक बहुत ही अच्छी कहानी है। कहते हैं कि रावण पूर्व जन्म में बैकुंठ लोक में द्वारपाल का काम करता था। वहां उसे श्राप मिला था कि वह राक्षस रूप में जन्म लेगा।उसे मुक्ति दिलाने के लिए ही विष्णु जी ने राम का अवतार लिया था।अपनी मुक्ति प्राप्त करने के लिए ही रावण अधर्म के पथ पर चलने लगा। इसे विपरीत भक्ति कहते हैं। तो रावण के बारे में कहा गया है। कि वह वेदों का ज्ञानी था। इसलिए उसे पता था कि मुक्ति प्राप्त करने के लिए विपरीत भक्ति ही एकमात्र मार्ग है। राम के हाथों मरने से वह बैकुंठ प्राप्त कर सकता है। इसलिए वह अधर्मी बन गया। इस तरह रावण के चरित्र पर चिंतन करने से हमें वेदों का वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है।

ज्योतिष साधना

Jyotis sadhna

ज्योतिषाचार्य डॉ विष्णु शास्त्री