श्री राम का नाम मानवता को प्राप्त ईश्वरीय आश्वासन है धर्म संस्कृति समाज और परिवार श्री राम के आदर्श तिथियों में जीने के लिए चिरकाल से उनका स्मरण करता आ रहा है चरित्र की दिव्यता और सबके हितकारी श्री राम को ” रामो विग्रहवांन धर्म:” अर्थात देवधारी धर्म कहा गया है यही बात मनुष्य को ईश्वर के सम्मुख खड़ा करती है जहां मनुष्य अपनी शुद्धता ओं के पास जाने का विश्वास पाता है अपने सदाचार से जगत में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पहचाने जाने वाले श्री राम का जन्म बाल लीला विवाह प्रसंग वनवास तथा उनका राज्य कार्य मानव जीवन के लिए एक स्पष्ट निर्देश है श्री राम की आदर्श परायणता को लक्ष्य करके राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है कि राम तुम्हारा व्रत स्वयं ही काव्य है कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है अन्यत्र भी लिखा गया है राम व्यक्ति को नहीं वृति को प्राप्त हुई संज्ञा है।

गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीराम को जन जन तक पहुंचाने का असाधारण कार्य किया है श्री राम की महिमा का स्मरण केवल भजन ही नहीं बल्कि भारत की युवा पीढ़ी को उनके आदर्श में डालने का सामाजिक प्रयोग भी है कैरियर बनाने की चिंता संबंधों में संतुलन का संघर्ष और बिखरते मनुकूल को सब कुछ पा लेने की बेचैनी के पार युवा पीढ़ी सुंदर समाज के निर्माण की भावना से अपने श्रम संसाधन और सुविधाओं का उपसर्ग करने योग्य बन सके यह रामत्व कि फलश्रुति होगी।

हर परिस्थिति मे सामान्य

को सामने पाकर भी श्रीराम अपनी मर्यादा से विचलित नहीं होते हैं।

न्याय के रास्ते पर चलते

जब सारी अयोध्या श्री राम को युवराज के रूप में देखने को आतुर है तब स्वयं श्री राम के मन में राजपथ की कोई अभिलाषा नहीं होती अपितु अपने लिए युवराज पद का प्रस्ताव होने पर श्रीराम चिंतन करते हैं कि पात्रता और अभिरुचि के परीक्षा किए बिना जेष्ठ पुत्र होने से मुझे ही युवराज बनाया जाना कितना न्याय संगत है महारानी के कई के मांगे हुए वचनों के अनुसार श्री राम का वनवास सुनिश्चित हो जाने पर पुत्र शोक में विभोर पिता के भावनाओं का सम्मान करते हुए भी वे कर्तव्य पथ से विमुख नहीं होते श्री राम भरत की प्रीति पर अभिमान करते हैं वे कहते हैं कि है लक्ष्मण भरत जैसा सच्चा भाई ब्रह्मा की सृष्टि में दूसरा मिलना कठिन है।

हर आयाम पर उतरे हैं खरे

नीति प्रीति को यथोचित रुप से समझने और निभाने वाले श्री राम महाराज जी दशरथ के यहां रोकने पर भी उनके निभाए गए सत्यव्रत की रक्षा करते हुए 1 चले जाते हैं वनवास में सीता और लक्ष्मण को साथ ले लेने पर भी 1 में भी उनकी सुरक्षा करते हैं उदासीन वृत्ति से रहने पर भी सीता जी का मनोरथ रखते हुए माया मृग को मारने जाते हैं गिर्राज जटायु का पिता जैसा सम्मान करते हुए अपने हाथों उनकी अंत्येष्टि करते हैं भक्ति मति शबरी के बेर खाते हैं और सीता के विरह में व्याकुल होने पर भी सुग्रीव से मैत्री होने पर पहले उनका कार्य सिद्ध करते हैं

हर किसी का करते है सम्मान

स्वयं अपने प्रयोजन की पूर्ति के लिए धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करते हैं श्रीराम विचार पूर्वक कार्य करते हैं कोई निर्णय लेते हुए वानर वालों से भी परामर्श करते हैं शत्रु के भाई विभीषण को शरण में लेना हो या समुद्र पार करने की चुनौती में सब की राय लेने के बाद ही आगे बढ़ते हैं अपने स्वभाव के आधार पर विभीषण को प्रेम और सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं और मित्र बनाकर पूरा सम्मान देते हैं।

श्री राम श्री मर्यादा का भी ख्याल रखते हैं श्री राम युद्ध भूमि में चक्कर नी शास्त्र हुए रावण को वापस जाने और स्वस्थ होकर युद्ध में आने का अवसर देकर अकल्पनीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं समाज में पवित्रता और प्रमाणिकता का मान रखने के लिए वे अपनी पल्ला वल्लभा सीता की भी अग्नि परीक्षा लेते हैं उनकी मनुष्य लीला को समझने और आत्मसात करने के लिए मानव जीवन की निष्कपट अनुभूतियों और सहजता को समझना होगा राज्याभिषेक के बाद गर्भवती देवी सीता को महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में भेजकर श्रीराम ने ऋषि कुल के संस्कारों को उजागर किया मुनि के आश्रम में जन्मे और पहले बड़े कुश और लव अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में प्राय समूची अयोध्या के सैन्य बल से युक्त योद्धाओं को पुरस्कार देते हैं सीता निर्वाचन के मर्म को न समझ पाने से उस पर शोक करने वालों को देखना चाहिए कि श्री राम ने श्री मर्यादा का असाधारण मान स्थापित किया है।