दिनाँक | 07 नवम्बर 2023 |
वार | मंगलवार |
विक्रम संवत् | 2080 |
शक संवत् | 1945 |
आयन | दक्षिणायन |
ऋतु | हेमंत |
मास | कार्तिक |
पक्ष | कृष्ण |
तिथि | दशमी 08 नवम्बर सुबह 08:23 तक तत्पश्चात एकादशी |
नक्षत्र | मघा शाम 04:24 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी |
योग | ब्रह्म दोपहर 03:20 तक तत्पश्चात इन्द्र |
राहु काल | दोपहर 03:11 से 04:35 तक |
सूर्योदय | 06:48 |
सूर्यास्त | 05:59 |
राहु काल | दोपहर 03:11 से 04:35 तक |
दिशा शूल | उत्तर दिशा में |
ब्राह्ममुहूर्त | प्रातः 05:05 से 05:56 तक |
निशिता मुहूर्त | रात्रि 11:58 से 12:49 तक |
व्रत पर्व विवरण | |
विशेष | दशमी को कलंबी शाक त्याज्य है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34) |
🔸लक्ष्मीप्राप्ति हेतु साधना🔸
12 नवम्बर से 14 नवम्बर 2023
*🔹दीपावली के दिन से तीन दिन तक अर्थात भाईदूज तक एक स्वच्छ कमरे में दीपक जलाकर एवं सम्भव हो तो गौ-गोबर और अन्य औषधियों से बनी धूपबत्ती जला के, पीले वस्त्र धारण करके पश्चिम की तरफ मुँह करके बैठे । ललाट पर तिलक ( हो सके तो केसर का ) कर स्फटिक मोतियों से बनी माला द्वारा नित्य प्रात:काल इस मन्त्र की दो मालाएँ जपें :*
ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे । अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात ।
🔸तेल का दीपक व धूपबत्ती लक्ष्मीजी की बायीं ओर, घी का दीपक दायीं ओर एवं नैवेद्य आगे रखा जाता है । लक्ष्मीजी को तुलसी तथा मदार (आक) या धतूरे का फूल नहीं चढ़ना चाहिए, नहीं तो हानि होती है । घर में लक्ष्मीजी के वास, दरिद्रता के विनाश और आजीविका के उचित निर्वाह हेतु यह साधना करनेवाले पर लक्ष्मीजी प्रसन्न होती है ।
🔹पानी पीने के बारे में कुछ बातें🔹
🔸हिचकी, सांस की तकलीफ, बुखार, सर्दी, ज्यादा मात्रा में घी खाया हो, गले की तकलीफ करवट के दर्द आदि में गर्म पानी पीने से लाभ होता है । – चरक संहिता
🔸सामान्यतया गर्म पानी से आशय है कि पानी को उबालकर, छानकर भर लेना । परंतु ऐसा- पानी ५-६ घंटों में पड़े-पड़े भारी हो जाता है । अतः ईंधन एवं समय की बचत के लिए व उपरोक्त रोगों में लाभ हो इस दृष्टि से आवश्यकतानुसार एक या आधा गिलास पानी आप सह सके उतना गर्म करके पीना चाहिये । इससे जठर की उष्णता बढ़ेगी और उपरोक्त रोग में लाभ होगा ।
🔸कुछ रोगों में अत्यंत ही अल्प मात्रा में जल लेना चाहिये । जैसे कि शरीर कमजोर पड़ जाना, पुरानी और नई सर्दी, पाचन शक्ति का मंद पड़ना, प्लीहा बढ़ना आदि रोगों में पानी अत्यल्प मात्रा में लेना चाहिये ।
🔹उन्नत एवं सफल जीवन के ११ सूत्र 🔹
१) भगवान से प्रार्थना करना ।
(२) ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सत्संग – श्रवण करना ।
(३) कुसंग से सर्वथा दूर रहना ।
(४) आलस्य और प्रमाद न करना ।
(५) नाच-गान, तमाशा, नाटक, सिनेमा आदि न देखना ।
(६) बुरी किताबें न पढ़ना ।
(७) मन और इन्द्रियों को बुरे विषयों की ओर जाने से रोकते रहना ।
(८) एकांत में मन और इन्द्रियों की विशेष रखवाली करना ।
(९) ब्रह्मवेत्ता महात्माओं के वचनों और सत्शास्त्रों की शिक्षाओं को याद रखना ।
(१०) अपनी स्थिति को सर्वथा देखते रहना । (सदैव आत्मनिरीक्षण करते रहना चाहिए । रात्रि को सोने से पूर्व अपने दिनभर के कार्यों को विचारकर देखना चाहिए कि ‘हमारा जीवन अवनति अर्थात् पतन की ओर तो नहीं जा रहा ?’ इस प्रकार अपने जीवन का अध्ययन करते हुए दुर्गुण, दुष्ट विचार, विकृत स्वभाव को त्याग के श्रेष्ठ गुण, श्रेष्ठ स्वभाव और सदाचार को अपने जीवन में ढालने का प्रयत्न करना चाहिए ।)
(११) मृत्यु, नरकों की यातना और हलकी योनियों के कष्ट की बातों को याद करते रहना ।
*शरीर अनित्य, नाशवान और क्षणभंगुर है, किसी भी समय मृत्यु को प्राप्त हो सकता है । जो मनुष्य जन्म में किये गये गलत कार्यों के फलस्वरूप मिलनेवाली दुःखद यातनाओं, नीच योनियों के कष्टों एवं मृत्यु को हमेशा स्मरण में रखता है, वह बुराइयों से, निंदनीय कृत्यों से स्वयं को बचाकर उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है । और जीवन में महान से महान ईश्वरप्राप्ति के लक्ष्य तक पहुँचने में भी सफल हो जाता है । कहा भी गया है :*