मकर सक्रांति का पर्व खगोलीय गणना के अनुसार मनाया जाता है। छठी सदी के महान शासक हर्षवर्धन के शासनकाल में यह पर्व है 24 दिसंबर को मनाया गया था। इसी तरह मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में यह पर्व है 10 जनवरी के दिन मनाया गया था। क्योंकि प्रतिवर्ष सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट के देरी से होता है। इसलिए यह तिथि आगे बढ़ती रहती है। और यही कारण है। कि हर 80 वर्ष में इस त्योहार की तिथि 1 दिन आगे बढ़ जाती है। हिंदू धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग किया था। इसके साथ ही इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं। और शनि देव मकर राशि के स्वामी भी हैं। तो इसलिए यह दिन मकर सक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही इस दिन गंगा स्नान के विशेष महत्व को लेकर एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। जिसके अनुसार मकर सक्रांति के दिन ही गंगा, राजा भरतरी के पीछे-पीछे चलते हुए सागर में जा मिली थी। यही कारण है कि इस दिन गंगा स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है। खासतौर से पश्चिम बंगाल के गंगा सागर में जहां इस दिन स्नान के लिए लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। और गंगा स्नान कर अपने सारे दुख मिटाने की प्रार्थना करते हैं।
मकर सक्रांति क्यों मनाया जाता है?
मकर सक्रांति के पर्व को लेकर लोगों की कई मान्यताएं प्रचलित हैं। जैसे कि हिंदू धर्म के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। तो उसे सक्रांति कहा जाता है।और इन राशियों की संख्या भी बाहर है। लेकिन इनमें मेष,मकर,कर्क,तुला जैसी 4 राशियां सबसे प्रमुख है। और जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर सक्रांति का यह विशेष पर्व मनाया जाता है।यह दिन हिंदू धर्म में काफी पुण्य दाई माना जाता है और मान्यता है। कि इस दिन किया जाने वाला दान अन्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक फलदाई होता है।मकर सक्रांति के दिन ही भारत में खरीद शीत ऋतु के फसलों की बुवाई की जाती है। और क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए यह फसलें किसानों की आय तथा उनके जीवन का एक प्रमुख दिन भी होता है।
मकर सक्रांति कैसे मनाते हैं
मकर संक्रांति उत्सव और आनंद का पर्व है। इस दिन भारत में खरीफ की नई फसल के स्वागत की तैयारी की जाती है। मकर संक्रांति त्योहार के दौरान लोगों में काफी प्रसन्नता और उत्साह देखने को मिलता है।इसमें देश के किसान भगवान से अपनी अच्छी वस्तुओं के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। इसलिए इसे फसलों और किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। लोग अपने अपने तरीके से इस सक्रांति को मनाते हैं।कई लोग इस दिन सुबह सुबह सर्वप्रथम स्नान करते हैं।और उसके बाद दान पुण्य करने घर से निकल जाते हैं।महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को तिल गुड़ बांटते हुए “तिलगुल धया आणि गोड गोड बोला ” बोलती हैं जिसका अर्थ होता है कि तिलगुल लो और मीठा बोलो भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में मकर संक्रांति के पर्व में खिचड़ी खा कर मनाते हैं। बिहार में इस दिन आप बड़े अपने छोटे बच्चों को तिल गुड़ खिलाकर बुढ़ापे में सेवा करने की बात कहते हैं पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर स्थान पर काफी विशाल मेला भी लगता है।जिससे लाखों की संख्या में श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं।
मकर सक्रांति का विशेष महत्व
आज हर पर्व की तरह मकर सक्रांति भी आधुनिकरण तरीके से मनाया जाने लगा है। पहले समय में इस दिन लोग खुले मैदानों या खाली जगह पर पतंग उड़ाया करते थे। जिससे किसी तरह की दुर्घटना होने की संभावना नहीं रहती थी लेकिन आज के समय में इसका विपरीत हो गया है। आजकल लोग खतरनाक मांझी का उपयोग करके पशु पक्षियों के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। और साथ ही पहले लोग घर में कई तरह के पकवान मिठाई बनाते थे। और सभी परिवार के लोग एक साथ होकर इस का आनंद उठाया करते थे।परंतु आज हर कोई बाहर से खाना मंगवा कर तथा अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके मकर सक्रांति का यह पर्व मनाने की होड़ में लगा हुआ है। जो कि आने वाले समय में खतरनाक साबित हो सकता है।इसलिए इस आपसी सौहार्द और प्रेम के त्योहार को ठीक पहले की तरह मनाना आवश्यक है।